सृष्टि है तेरी कविता गाती है सन्ना तेरी (2)
सारी धरा पर गूंजती है निशि दिन महिमा तेरी (2)
झरने की कलकल भी करती हैं तेरी महिमा
पंछी भी गाते हैं तू है कितना महान्
वन के सुमन भी विहंसते करते हैं जय जयकार ऽऽ (2)
नभ की नीलिमा सितारे धरती को करते इशारे
सागर की चंचल मौजें देती हैं तेरी यादें
ऊँचे शिखर भी कहते तेरी कला है अपार ऽऽ (2)
दाऊद के गीतों में है तेरी प्रशंसा की धारा
जन्नत में कहते फरिश्ते करतार है तू ही हमारा
सृष्टि के हर एक कण में निखरा है तेरा प्यार ऽऽ (2)